पत्रांक:- अ16/क21/381
दिनांक- 31/05/2024
परिणाम
छठवें श्री मनोहर सिंह यादव स्मृति सृजन श्री अलंकरण- 2024
हेतु आयोजित
सृजन परंपरा गीत की नामक
गीत सृजन प्रतियोगिता
अंतिम-चरण
*बारहवां-माह:-* (मई – 2024)
के लिए दिए गए चित्र को विषय बनाकर द्वितीय चरण के विजेताओं द्वारा भेजे गए गीतों के मूल्यांकन के पश्चात का परिणाम
प्रथम स्थान – *कोड (ऐ)* कोशिश करना राह दिखाएं बनकर वेद ऋचाएं
(छठे सृजन श्री अलंकरण से सम्मानित होने वाला गीत)
द्वितीय स्थान – *कोड (ओ)* अंतर की ज्वाला में तपकर स्वर्ण कलश बन जाती है
तृतीय स्थान – *कोड(औ)* टूटे सपने बिछड़े अपने
आधिकारिक हस्ताक्षर
*प्रो. अजिर बिहारी चौबे*
उप निदेशक मूल्यांकन/मुख्य निर्णायक
मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष, एस.आर.के. स्नातकोत्तर
महाविद्यालय, फिरोजाबाद
प्रथम स्थान – *कोड (ऐ)*
कोशिश करना राह दिखायें,
बनकर वेद ऋचाएँ ।
उद्वेलन से निकल रही जो,
अनगिन अग्नि शिखाएँ ।
पल में खाक बना सकती है,
सिर्फ एक चिनगारी
और उसी से चमका सकते,
हैं हम दुनिया सारी
यह संभव जब सब चिनगारी,
बन जायें ज्वालाएँ ।
जीवन रूपी यज्ञकुंड की,
अहंकार समिधा है
आहुति दे दें हव्य बनाकर,
जो मन में दुविधा है
स्वाहा – स्वाहा से कर देना,
गुंजित दशों दिशाएँ ।
जैसे सोच ऊर्ध्वगामी हो,
मन में सुख उपजाती ।
वैसे ही बस ऊपर उठना,
अग्निशिखा सिखलाती ।
हवनकुंड की ज्वालाओं- सी,
करना शुद्ध हवाएँ ।
✍️–प्रेम नाथ मिश्र “प्रेम”
इंद्रासना निवास,आरपीएम गली
आजादनगर, रूस्तम पुर
जनपद-गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड – 273016
संपर्क सूत्र- 9670919777
द्वितीय स्थान – *कोड (ओ)*
अंतर की ज्वाला में तपकर
स्वर्ण कलश बन जाती है
अग्निपरीक्षा देती नारी
तनिक नहीं घबराती है।।
दर्द-वेदना, कपट- यातना
नित्य हृदय को छलते हैं
ठंडक से भी पांव हमेशा
तापित होकर जलते हैं
खुद को कर देती है समर्पित
अश्रु नहीं छलकाती है
अग्निपरीक्षा देती नारी
तनिक नहीं घबराती है।।
सावन की रिमझिम फुहार में
उसको तपते देखा है
चूल्हे में लकड़ी के संँग – संँग
पल – पल जलते देखा है
हर्ष विंदु नयनों में भरकर
खुद की दाह मिटाती है
अग्निपरीक्षा देती नारी
तनिक नहीं घबराती है।।
सूरज के किरणों की लाली
उसके माथे पर दमके
आंखों में अंबर-सा सपना
चंदा के जैसे चमके
कुछ भी कर जाने की ताकत
बढ़ चढ़ कर दिखलाती है
अग्निपरीक्षा देती नारी
तनिक नहीं घबराती है।।
कब तक देगी अग्नि परीक्षा
खुलकर अब इंकार किया
सकल सृष्टि संचालित इससे
शक्ति का विस्तार किया
रोज नये इतिहास बना कर
धरती पर लिख जाती है
अग्नि परीक्षा देती नारी
तनिक नहीं घबराती है ।।
डा रीना मिश्रा
देवरिया उत्तर प्रदेश
6307608905
तृतीय स्थान – *कोड(औ)*
टूटे सपने बिछड़े अपने
सूखते दृग कह रहे सब
वेदनाओं का तुझे प्रिय खत लिखूं मैं
क्यों विरहनी दीन हूं अधिकार में
मैं विरहनी हीन हूं संसार में
पल्लवित अंकुर स्वयं भू ही निगल ले
क्या भला संचित करेगी तब धरा ये।
मेघ अंबर ही पचा ले सोम रस यदि
तो भला संसार हो कैसे हरा ये।
रंग धानी आसमानी नवल पल्लव
प्रेम पतझड़ सा बिखरता सार में
मैं विरहनी हीन हूं संसार में
भूख से विच्छिन मन सह जायेगा
प्रेम से वंचित हृदय रह जायेगा
प्रेम की प्यासी सुबकती मीन का तन
नीर से यदि हो अलग बह जायेगा
नयन कोरों से झरे ये विरह मोती
हैं फकत हिम बिंदु इस व्यापार में
मैं विरहनी हीन हूं संसार में
केश नागिन से कभी थे और अब ये
सब जटाएं जूट सम प्रिय हो गईं हैं
नयन जो मृग नैनिका के थे कटीले
श्वेत पलकें सूत के सम हो गईं हैं
खोजते रहते हैं व्याकुल घन विजन में
ज्यों गया खो पुष्प गुंफित हार में।
मैं विरहनी हीन हूं संसार में।
नाम _ वन्दना”ओजल”
पता _ देवपुर पारा राजाजीपुरम लखनऊ _226017
*सभी विजेताओं को बधाई एवं शुभकामनाएं*
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*प्रेषक*
*कृष्ण कुमार “कनक”*
संस्थापक/प्रबंध-सचिव
प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट
मो. 7017646795
*प्रवीण पाण्डेय*
प्रतियोगिता प्रभारी/ ट्रस्ट उपाध्यक्ष
मो. 8218725186
*कुँ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह जादौन*
सहनिदेशक- साहित्य
मो. 9897807132
*आकाश यादव*
मुख्य व्यवस्थापक
मो. 8791937688
*यशपाल यश*
ट्रस्ट अध्यक्ष
मो.9837812637
*गौरव चौहान गर्वित*
संस्थापक सचिव
मो.9412500858
*सचिन कुमार बघेल*
ट्रस्ट कोषाध्यक्ष
मो. 8077069829