परिणाम
कोड- ठ प्रथम स्थान
कोड- झ द्वितीय स्थान
कोड- ज तृतीय स्थान
हस्ताक्षर
डॉ. अजिर बिहारी चौबे
मूल्यांकन समिति प्रमुख
दिनांक 31 अगस्त, 2022
कोड – ठ (प्रथम)
दिव्य दीप आलोकित अनुपम, आभासित हैं राह खड़े ।
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, जरा सँभल कर पाँव पड़े ।।
उद्वेलित मन आवेगों को, समझ प्रेम रस धार नहीं ।
केवल मिथ्या आकर्षण यह, कोई सच्चा प्यार नहीं ।
प्रेम-पाश में बँधे वही मन, जहाँ त्याग का सुमन खिले।
है पवित्र यह वस्तु अमोलक, भाग्य प्रबल हो तभी मिले।
भाव समर्पण जगे हृदय में, तभी भरे हैं प्रेम घड़े ।
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, जरा सँभल कर पाँव पड़े ।।
शूल चुभे पग छलनी होते, केवल पुहुपन हार नहीं ।
अश्रु हँसी दोनो ही मिलते, सिर्फ खुशी बौछार नहीं ।
स्वर्ण थाल पर सज्जित केवल, जगमग होता दीप नहीं।
तड़पन छूए चरम जहाँ पर, मिले प्रेम फिर खड़ा वहीं।
अधर मधुर मुस्कान बिखेरे, मिले दर्द भी खूब बड़े ।
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, जरा सँभल कर पाँव पड़े ।।
हो अटूट यह प्रेम-पाश जो, शक्ति न कोई तोड़ सके।
वह सामर्थ्य भरो इसमें जो, जीवन धारा मोड़ सके।
स्वप्न लोक में भले विचर लो, पाँव धरातल बीच रहे ।
सत्य प्रेम का संगम होवे, अमृत मयी रस धार बहे ।
खो मत जाना चकाचौंध में, शीशा चमके रत्न जड़े ।
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, जरा सँभल कर पाँव पड़े ।।
इन्द्राणी साहू”साँची”
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
कोड- झ (द्वितीय)
* प्रेम के शुचि पाश में तो बस बँधा ही नित रहूँ मैं,
भूलकर साथी स्वयं से अब मुझे मत दूर करना ।
क्या करूँ वैराग्य लेकर क्या भला उससे मिलेगा?
चाहता हूँ मैं हमेशा अब तुम्हारे साथ रहना ।।
नेह के पथ पर हमें तो हाथ में निज हाथ देकर,
धार सरिता के सरिस बन अब सदा ही साथ बहना ।
क्या करूँ वैराग्य लेकर क्या भला उससे मिलेगा?
चाहता हूँ मैं हमेशा अब तुम्हारे साथ रहना ।।
* तार झंकृत हो गए मन- साज के अब झनझनाकर,
आस पर विश्वास का नव रूप गढ़ता जा रहा है ।
अनछुई संवेदना जागी हृदय में आज देखो,
कल्प कल्पित राग का आलाप बढ़ता जा रहा है ।।
प्रेम का मधुमय कलश छलका हुआ सिंचित हृदय है,
दे प्रणय का दान अब तो जन्म सार्थक आज करना ।
क्या करूँ वैराग्य लेकर क्या भला उससे मिलेगा?
चाहता हूँ मैं हमेशा अब तुम्हारे साथ रहना ।।
* प्रेम अविरत सत्य शाश्वत जीत उर- आधार है यह,
साथ जग के ये निरंतर दृश्य भ्रामक भी रहेंगे ।
किंतु प्रेमिल स्वप्न पर तो सप्तरंगी आभरण को,
रंग खुशियों के सभी अब साथ मिलकर हम भरेंगे ।।
हो अलंकृत आज मानस प्रेम को पा पूज्य पावन,
उष्ण वर्षा शीत पतझड़ है हमें अब साथ सहना ।
क्या करूँ वैराग्य लेकर क्या भला उससे मिलेगा?
चाहता हूँ मैं हमेशा अब तुम्हारे साथ रहना ।।
***********
भरत नायक “बाबूजी”
लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.)
पिन – 496100
मो. – 9340623421
कोड – ज (तृतीय)
मनमीत मिले हो तुम जबसे,तब से मैं हॅंसना सीख गया।
जागी रातों का सूनापन, ख़्वाबों में बसना सीख गया।।
निर्मोही मन के शांत ताल में, प्रेम तरंग हिलोर उठी।
वीणा सा ह्रदय हुआ झंकृत, फिर सप्त स्वरों की घोर उठी।।
अब प्रेम-पाश के बंधन में,ये मन भी फॅंसना सीख गया।
मनमीत मिले हो तुम जबसे………।।
अब चाॅंद सुहाना लगता है, अपने से तारे लगते हैं।
अब फूलों के संग लगे हुए, कांटे भी प्यारे लगते हैं।।
तेरी तरह मैं भी तो अब, आंखों से डसना सीख गया।
मनमीत मिले हो तुम जबसे………..।।
अरमानों के इस मधुवन में,अब भ्रमर बसंती उमड़ रहे।
उम्मीदों के इस आंगन में, यादों के पंछी घुमड़ रहे।।
सूनी अंखियों का मौसम भी, घनघोर बरसना सीख गया।
मनमीत मिले हो तुम जबसे………….।।
इक झलक तेरी पाने को अब, दिन-रैन प्रतीक्षा करता हूं।
कभी दूर न हो तुम मुझसे अब,हर पल ये इच्छा करता हूं।।
पहले भी तरसा था ये दिल, अब और तरसना सीख गया।
मनमीत मिले हो तुम जबसे तब से मैं हंसना सीख गया।।
नरेन्द्र सिंह चंदेल
ग्राम-कैलकच्छ पोस्ट अनघोरा
तह.उदयपुरा जि.रायसेन म.प्र.
पिन कोड-464776
फोन नं.7697656099
अगस्त माह के सभी विजेता गीतकारों को हृदय से बधाई वे शुभकामनाएं
प्रेषक
कृष्ण कुमार कनक
प्रबंधक सचिव
प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट
“कनक निकुंज”, ठार मुरली नगर
गुंदाऊ, लाइन पार, फिरोजाबाद
उत्तर प्रदेश – 283203
मो. 7017646795, 9259648428