परिणाम छठवें श्री मनोहर सिंह यादव स्मृति सृजन श्री अलंकरण- 2024 हेतु आयोजित सृजन परंपरा गीत की नामक गीत सृजन प्रतियोगिता

पत्रांक:- अ16/क21/342
दिनांक- 31/10/2023

परिणाम
छठवें श्री मनोहर सिंह यादव स्मृति सृजन श्री अलंकरण- 2024
हेतु आयोजित
सृजन परंपरा गीत की नामक
गीत सृजन प्रतियोगिता

प्रथम-चरण
पंचम-माह:- (अक्टूबर – 2023)
के विषय:- युद्ध हेतु प्राप्त गीतों के मूल्यांकन के पश्चात का परिणाम
प्रथम स्थान – कोड़ (ञ) छोड़ डाली को चला है पुष्प
द्वितीय स्थान – कोड़ (ट) कहीं पर युद्ध जब भी हो
तृतीय स्थान – कोड़ (ज) क्रोध जहाँ अनियंत्रित होता

आधिकारिक हस्ताक्षर
प्रो. अजिर बिहारी चौबे
उप निदेशक मूल्यांकन/मुख्य निर्णायक
मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष, एस.आर.के. स्नातकोत्तर
महाविद्यालय, फिरोजाबाद

प्रथम स्थान – कोड़ (ञ)

छोड़ डाली को चला है, पुष्प घर संसार का।।

जल रहा है पुष्प तोरण,द्वार पर सत्कार का।

 

युद्ध का आतंक पसरा,विश्व के भू भाग में।

भस्म होते आज प्राणी,नाश की उस आग में।।

बाल शिशु की चीख गूँजे ,आसमाँ कंपन करे।

तार टूटें अस्मिता के,वेदना क्रंदन करे।।

चौखटें पर दहशतों के ,बम हजारों बोलते।

कौन अपना कौन दूजा,गम रहे हैं तोलते।।

भूमि पर कंकाल सोये,दृश्य किसके वार का।

जल रहा है पुष्प तोरण,द्वार पर सत्कार का।

 

शून्य होती चेतना में, वासना की जीत है।

“मैं”जगत में श्रेष्ठ सबसे, दम्भता से प्रीत है।।

आचरण में दैत्यता का ,कर्म अवयव पूजता।

हो धरा का शान्त उपवन,भावना को सूझता।

पा रहा कटु पीर तन भी , मन कहाँ से बुद्ध है।

रेणु कण नयनों बसाये,क्षण सघन कब शुद्ध है।।

काल को भी मात देता,ये समय की धार का।

जल रहा है पुष्प तोरण,द्वार पर सत्कार का।

 

ध्वंस घटना चक्र देखे, काल ने भू भाल में।

प्राण निश्छल सो गये थे,एक ऐटम ताल में।।

सीख लेना देख मानुष,गर्त के आघात से।

मत बढ़ा तू पाँव अपने,गाँव पर शह मात के।।

हाथ रीते ही रहेंगे,भग्न हो काया किला।

राज का विस्तार रीता, बिंब भी झूठा मिला।।

जीव आशा को बचाओ, रोक शर संहार का।

जल रहा है पुष्प तोरण,द्वार पर सत्कार का।

 

स्वरचित/ मौलिक/ अप्रकाशित

रचना उनियाल

 

पता:-
Flat no-410 Sai charita green oaks apartments
Horamavu main road , Horamavu Bangalore
Karnataka पिन कोड-560043 मोबाइल-9986926745

द्वितीय स्थान – कोड़ (ट)

कहीं पर युद्ध जब भी हो रुधिर से भू नहाएगी ।
धरा निज बदनसीबी पर यहां आंसू बहाएगी ।

कभी भी युद्ध का परिणाम सुखदायक नहीं होगा ।
भले तुम जीत जाओ युद्ध फलदायक नहीं होगा ।
तड़पते सैनिकों की याद सदियों तक सताएगी,
धरा निज बदनसीबी पर यहां आंसू बहाएगी ।

कभी नेता अहंकारी यहां रण मोल लेते हैं ।
कभी आतंकवादी युद्ध जबरन थोप देते हैं ।
लुटी इज्जत मरे बच्चे लड़ाई फिर रुलाएगी,
धरा निज बदनसीबी पर यहां आंसू बहाएगी ।

हुआ यदि विश्व-रण जग में मिटेगी सृष्टि पल भर में ।
दिखेगा फिर नहीं जीवन यहां पर ही किसी घर में ।
सुनोगे राख में सिसकी, हवा भी काॅ॑प जाएगी,
धरा निज बदनसीबी पर यहां आंसू बहाएगी ।

करेगा अंत में क्रंदन मिलेगा कुछ नहीं तुझको ।
क्षमा भी मांगने का वक्त देगा वह नहीं तुझको ।
रहेंगे प्रश्न अनसुलझे, समीक्षा भी सताएगी,
धरा निज बदनसीबी पर सदा आंसू बहाएगी ।

मैं प्रमाणित करता हूं कि मेरी उपरोक्त रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है।

भवदीय
रघुनंदन हटीला ‘रघु’
ए- 34, राजेन्द्र विहार, न्यू आकाशवाणी कोलोनी कोटा राज. – 324001
मोब.- 8003161443
E – mail – raghunandanhatila@gmail.com

तृतीय स्थान – कोड़ (ज)

* क्रोध जहाँ अनियंत्रित होता, शांत चित्त को वह भड़काता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।
कुंठा भरा अमर्षित मानव, अपना धैर्य- विवेक गँवाता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।

* अधिपति की मति मारी जाती, अहंकार जब सिर चढ़ बोले ।
विभीषिका अति बढ़ती जाती, तब विकराल काल मुँह खोले ।।
जन- धन की क्षति भारी होती, दृश्य हृदय को है दहलाता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।

* युद्ध छिड़ा जब जहाँ कहीं भी, हुआ विनाश वहाँ है जानो ।
भला हुआ कब कहाँ किसी का, हार जीतकर भी है मानो ।।
होता पश्चाताप बहुत है, आजीवन मन चैन न पाता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।

* जब भी जग में जंग हुई है, कारण तब हो चाहे जैसा ।
मरा सदा ही आम आदमी, हुआ कहो यह हितकर कैसा ??
लाशों की ढेरी पर चलकर, कोई क्या रणजयी कहाता ?
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।

* सत्य- न्याय निर्वासित कर यह, द्वंद्व, द्वेष, दुर्भाव बढ़ाए ।
प्रलय- धुम्र अंबर पर छाए, हर क्षण भू का दिल दहलाए ।।
धू- धू करके जले जगत फिर, जीवन पतझड़- सा हो जाता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।

* बाधित होती उन्नति इससे, ग्रास नाश का विकास होता ।
भोग विकट फल बर्बरता का, शोक समाहित मानस रोता ।।
व्यथित हृदय तब आकुल होकर, अनहोनी से है घबराता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।

* शोक समाहित अशोक आया, विजयी कलिंग योद्धा रोया ।
शस्त्र त्याग तब धर्म- कर्म कर, अपने पापों को वह धोया ।।
राम- कृष्ण- सम धर्म- युद्ध कर, धन्य वही जो राज्य चलाता ।
बढ़ता जब प्रतिशोधानल है, सारा सुख- संसार जलाता ।।
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भरत नायक “बाबूजी”, लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग.)
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