चतुर्थ सृजनश्री अलंकरण-2022″ हेतु आयोजित “सृजन परंपरा गीत की….गीत सृजन प्रतियोगिता” के द्वितीय चरण (अप्रैल-2022) का परिणाम

 

सुकवि मथुरा प्रसाद मानव स्मृति “चतुर्थ सृजनश्री अलंकरण-2022” हेतु आयोजित “सृजन परंपरा गीत की….गीत सृजन प्रतियोगिता” के द्वितीय चरण (अप्रैल-2022) का परिणाम
विषय – युद्ध

प्रथम – कोड संख्या – 2

शब्द शब्द सँजीवनी मेरे , मैं जीवन लौटाता हूँ ,
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !

तन के घावों का क्या है वो
औषधि से भर जायेंगे
मन के छाले जो देखे तो
जग सुषेन डर जायेंगे

वाणी की वीणा से मन की , पीड़ा को भरमाता हूँ ,
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !

कोलाहल ही कोलाहल है
खबरें खूनी खारी हैं
कुरुक्षेत्रों पर सदा सदा से
जमुना के तट भारी हैं

मैं रणभेरी के प्रांगण में , रसमय रास रचाता हूँ
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !

मेरी झोली में आलिंगन
थपकी लोरी सब कुछ है
पक्के मन के क्या समझेंगे
कच्ची डोरी सब कुछ है

ढाई आखर ढीठ जगत को , ढूंढ ढूंढ पकड़ाता हूँ
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !

धरती अम्बर जीत लिए तो
क्या जीता है रे तुमने
तन का यह घर जीत लिया तो
क्या जीता है रे तुमने

मन की मिथिला जीतो जाकर , जग को यह समझाता हूँ ,
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !

मैं प्रहलादों का पागलपन
मैं मीरा का प्याला हूँ
शमशानों में डोल रहा हूँ
सत्य बोलने वाला हूँ

मर कर भी मैं मर ना पाऊँ , ऐसे प्राण गँवाता हूँ ,
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !

मुझे न पूछो कौन भला मैं
वंशी का वंशज हूँ मैं
सूर कबीरा तुलसी बाबा
के चरणों की रज हूँ मैं

मैं वो हूँ जो लाघव मन को , राघव सा कर जाता हूँ ,
समर भूमि में अड़ा हुआ हूँ , राग शांति का गाता हूँ !!

आलोकेश्वर चबडाल
1119 चिपलुनकर कुंज
गेल गाँव
दिबियापुर
औरैया
उत्तर प्रदेश
206244
मो. – 9720166139

द्वितीय कोड – 16

प्रार्थना के स्वरों में असर भर रहा ,
युद्ध आगे न हो प्रार्थना कर रहा ,

युद्ध कुछ भी नहीं,युद्ध उन्माद है,
शस्त्र भाषा जहाँ, शून्य संवाद है,
युद्ध हल है कहाँ, युद्ध अभिशाप है,
क्रूरतम भाव का युद्ध अनुवाद है,
जीत की चाह में हार ही हार है,
सोचकर आज यह मन बहुत डर रहा,

प्रार्थना के स्वरों में असर भर रहा,
युद्ध आगे न हो प्रार्थना कर रहा ,

दृश्य यह दानवी नाश का द्वार है,
एक शापित सनक जो गुनहगार है,
थाम लो युद्ध को युद्ध होने न दो,
यह धरा की मधुर मंद मनुहार है,
मान मनुहार को इस मधुर प्यार को,
प्यार ही हर विजय को अमर कर रहा,

प्रार्थना के स्वरों में असर भर रहा ,
युद्ध आगे न हो प्रार्थना कर रहा ,

खुशबुओं की खुमारी बहकने लगें,
बाग में फूल-कलियाँ महकने लगें,
कूँजती कोयलें कूँजती ही रहें,
खेत-खलिहान फिर से चहकने लगें,
खूबसूरत बहुत जिंदगी है मगर,
बिष वमन युद्ध का अब असर कर रहा,

प्रार्थना के स्वरों में असर भर रहा ,
युद्ध आगे न हो प्रार्थना कर रहा ,

यह निशा कह रही हर दिशा कह रही,
भोर के सूर्य से मन तृषा कह रही,
अब धरा के धड़कते हृदय की सुनो,
रोशनी कालिमा से यहाँ कह रही,
चीखती सिसकियाँ धैर्य कब तक रखें,
आत्मघाती कदम से न नर डर रहा,

प्रार्थना के स्वरों में असर भर रहा ,
युद्ध आगे न हो प्रार्थना कर रहा ,

प्रीत की लौ जलाने चले आइये,
प्रेम का गीत गाने चले आइये,
है घृणा से घृणा जन्म लेती सदा,
प्यार से प्यार पाने चले आइये,
यूँ न सोचो बहुत अब बढ़ाओ कदम,
नेह को आ बचा लें कि जो मर रहा,

प्रार्थना के स्वरों में असर भर रहा ,
युद्ध आगे न हो प्रार्थना कर रहा ,
💐💐💐💐💐💐💐
संतोष कुमार शर्मा
MIG- 1069/4R
आवास विकास कॉलोनी
बोदला,आगरा-28 2007
Mob: 7007615587
9412405127

तृतीय कोड – 10

जीवन से ही जीवन के
इन अवकाशों का युद्ध।
जाने कब तक और चलेगा यह श्वाँसों का युद्ध‌।

भाग्य हथेली की रेखाएँ
कुछ वादे कुछ नियम प्रथाएँ
निठुर नियति के चक्रव्यूह में
त्याग रहीं जीवन इच्छाएंँ
उर की कोमल साधों से
शकुनी-पासों का युद्ध।
जाने कब तक और चलेगा यह श्वाँसों का युद्ध‌।

स्वप्नों की आँखें भर आई
अंतस की नदिया पथराई
इस नदिया में मछली जैसी
तैर रही सुधि की परछाई
दुख के दुष्कर सच से
सुख के आभासों का युद्ध।
जाने कब तक और चलेगा यह श्वाँसों का युद्ध‌।

स्मृति के तीखे शूलों से
हिय के घाव भरेंगे कैसे?
आशा के कुछ तुहिन बिन्दु
चिर युग की तृषा हरेंगे कैसे?
भावी सुख से वर्तमान के
संत्रासों का युद्ध।
जाने कब तक और चलेगा यह श्वाँसों का युद्ध‌।

नाम – आराधना शुक्ला
पता – 125/84 एल ब्लॉक गोविन्द नगर कानपुर (उत्तर प्रदेश)
पिन- 208006
फोन नं. – 7398261421

चतुर्थ कोड – 17

मानवता के रक्त बिंदु से हाथ नहीं धोने देना।
लाख यत्न करना, पर हरगिज युद्ध नहीं होने देना। ।
देख तांडव नग्न मौत का डर जाता है हर मानव,
काल पाश ले हाथ खड़ा होता है जब खूनी दानव
कितने बिछड़ते हैं अपनों से मिटते हैं कितने परिवार,
कितने मारे-मारे फिरते होकर घर से बेघरबार
पुरखों को बच्चों की लाशें कभी नहीं ढोने देना
लाख यत्न करना, पर हरगिज युद्ध नहीं होने देना।
बारूदी-बिस्फोट धरा से अंबर तक जो मार करें,
कहां शरण ले मानवता, क्या ऐसे में लाचार करें
यदि मानव हैं तो मानव पर क्यों ये अत्याचार करें,
नहीं सिखाता मज़हब कोई मासूमों पर वार करें
मासूमों को कभी खून के अश्रु नहीं रोने देना
लाख यत्न करना पर हरगिज युद्ध नहीं होने देना।
दया और करुणा से आँखें फेर खड़ा जब होता है,
हँसता है शैतान और इंसान बेचारा रोता है
कर देता सब मार्ग बंद नफ़रत में प्यार बदलता है,
तिनका-तिनका खाक करे जब युद्ध भयानक होता है
असमय और अकाल मौत की नींद नहीं सोने देना
लाख यत्न करना पर हरगिज युद्ध नहीं होने देना।
संप्रभुता या राष्ट्र-हितों को अगर दबाया जाता है,
उनकी रक्षा हेतु जरूरी युद्ध बताया जाता है
अबला नारी या निर्बल पर कोई अगर प्रहार करें,
कहती गीता शस्त्र उठा तब हम उनका संहार करें
नीति हेतु हथियार उठाना, कभी न रख कोने देना
लाख यत्न करना पर हरगिज युद्ध नहीं होने देना।
युद्ध और हिंसा से कोई समाधान कब होता है,
विश्व विजय के लिए जरूरी क्षमादान भी होता है
पंचशील कहता पर-संप्रभुता पर मत तुम चोट करो,
शांति, सुलह से मसले हल हों ये विधान भी होता है
जियो और जीने दो अपना धैर्य नहीं खोने देना
लाख यत्न करना पर हरगिज़ युद्ध नहीं होने देना।।
प्रेषक-सुधीर कुमार मिश्र द्वारा पंकज कुमार तोमर, नाहिली मार्ग नई बस्ती, घिरोर
जनपद-मैनपुरी (उत्तर प्रदेश)
पिन-205121
मोबाइल नंबर-7906958114
WhatsApp-9719206871

पंचम कोड – 18

ध्वंस-लय के पांव भारी हैं
ओ स्रजन के देवता जागो !

दुख रहे कंधे हवाओं के
सत्य की अब अर्थियां ढोते।
देखकर उन्माद का चेहरा
आंधियों के मन हुए छोटे।
फिर गरल है सिंधु से निकला
ओ सुधा के देवता जागो!
ध्वंस लय के पांव भारी हैं
ओ सृजन के देवता जागो!

दूरियों की आस में झुलसा
साथ खेला जो सलोनापन
घ्रणा में आकंठ हैं डूबे
फिर न जाने क्यों सभी के मन
शांति डसती है उन्हें लगता
ओ हृदय के देवता जागो!
ध्वंस लय के पांव भारी हैं
ओ स्रजन के देवता जागो!

चितवनों में उग रहे कांटे
कांपते विश्वास के डैने
नेह की नाजुक हथेली है
घ्रणा के नाखून हैं पैने
फिर कबूतर रक्त में डूबे
ओ भुवन के देवता जागो!
ध्वंस लय के पांव भारी हैं
ओ स्रजन के देवता जागो !
सुशील सरित
36,अयोध्या कुंज ए आगरा 282001
📞09411085159

षष्टम् कोड – 23

इस दुनिया से आँख चुराकर खुद के आँसू पी लेना।
इतना सरल नहीं होता लड़को सा जीवन जी लेना।

जिसके सर पर घर की सारी
जिम्मेदारी होती है
घर ही उसका उसकी खातिर
दुनिया सारी होती है
सबकी ही खुशियाँ बनने की इक जिम्मेदारी लेना।
इतना सरल नहीं होता लड़को सा जीवन जी लेना।

घर के बिगडे़ हालातों से
युद्ध उसे लड़ना पड़ता है
कठिन डगर पर बिना रुके ही
जिसको चलना पड़ता है।
उससे पूछो हसकर मन के जख्मों को फिर सी लेना।
इतना सरल नहीं होता लड़को सा जीवन जी लेना।

अपनी सारी इच्छाओं को
दफन हमें करना पड़ता।
सबकी खुशियों की खातिर ही
मन ही मन मरना पड़ता
इच्छायें सब मरी हुई पर आँसू साथ नहीं लेना
इतना सरल नहीं होता लड़को सा जीवन जी लेना।
कृतार्थ पाठक
शहाबाद ,हरदोई
( उत्तर प्रदेश) -241124
मो. 9170720096

सप्तम् कोड – 03

प्रीति पुंज पुण्य पूर्ण प्रार्थना है उर्मिला।
अनवरत युगों चली उपासना है उर्मिला।

जब कथा में पात्र उर्मिला लखन बुने गए।
प्रेम त्याग के वो सब कुसुम वहीं चुने गए।
प्रेरणा बनी सदा गए थे संग जो लखन।
धर्म यज्ञ में हो मूक कर रही थी आचमन।
साधु सिद्ध दिव्य पीर साधना है उर्मिला।

त्याग और प्रीति की परीक्षा दे रहे व्रती।
पुण्य क्षेत्र के प्रतीक कर रहे थे आरती।
शुचि लखन की वीरता के गीत जब गढ़े गए।
उर्मिला के प्रीति के प्रमाण सब पढ़े गए।
स्वस्ति कामना पुनीत वंदना है उर्मिला।

पुण्य पंथ नित लखन चले थे साथ उर्मिला ।
युद्ध भी स्वयं से लड़ रहे थे नाथ उर्मिला।
प्रीति शक्ति से सदा लड़ी थी युद्ध उर्मिला।
मन में छा रहे अभाव के विरुद्ध उर्मिला।
त्याग कौमुदी प्रणम्य अल्पना है उर्मिला।
अनवरत युगों चली उपासना है उर्मिला।

 

नाम-गीता गुप्ता ‘मन’
पता-Manish kumar
Pa sbco
Head post office sitapur
261001
Ph.9453993776

अष्टम् कोड- 19

सबको और बड़ा बनना है, जो है उससे संतुष्ट नहीं।
इस आपाधापी के कारण, कदम-कदम पर युद्ध हो रहे।

व्यापारिक सम्बंध हुए सब, अपना-अपना सोच रहें हैं।
तन का भले घनत्व बढ़ रहा, मन को मन से नोंच रहें हैं।
चतुर सुजान बने हैं ऐसे, आपस में मुख मोड़ रहें हैं।
आगे बढ़ने की चाहत में, खुद को पीछे छोड़ रहें हैं।
आदर्शों को गिरवी रखकर, नैतिकता पर क्रुद्ध हो रहे।
इस आपाधापी के कारण, कदम-कदम पर युद्ध हो रहे।

गौतम – नानक – गांधी वाले, अब सपने झूठे लगते हैं।
जिनके लिए सभी कुछ वारा, वो अपने रूठे लगते हैं।
सामाजिक प्राणी मानव भी, अब बड़े अनोखे होते हैं।
किस पर करें यकीन यहाँ अब, विश्वासी धोखे होते हैं।
अपना स्वार्थ सोचते निश-दिन, इसमें नित्य प्रबुद्ध हो रहे।
इस आपाधापी के कारण, कदम-कदम पर युद्ध हो रहे।

जीभें नित्य मिठास खो रहीं, खून शर्करा बढ़ती जाती।
शुचिता मन की जमीदोंज है, कटुता सीढ़ी चढ़ती जाती।
आभासी दुनिया में खुश है, लेक़िन घर में मेल नहीं है।
तम हरने वाले दीपक में, अपनेपन का तेल नहीं है।
मन में लोभ – दंभ पोषित है, तन से केवल शुद्व हो रहे।
इस आपाधापी के कारण, कदम-कदम पर युद्ध हो रहे।

ध्रुव – नचिकेता वाली पीढ़ी, पथ से अपने भटक रही है।
लक्ष्य सही चुनना था लेकिन, अवरोधों में अटक रही है।
संघर्षों से डर लगता है, तीव्र सफलता खोज रहें हैं।
नागफनी के वन में जाकर, सुमन विमलता खोज रहें हैं।
अंगुलिमाल कहाँ सुधरेगा? रोज नए जब बुद्ध हो रहे।
इस आपाधापी के कारण, कदम-कदम पर युद्ध हो रहे।

अवनीश त्रिवेदी ‘अभय’

ग्राम- मोहरनिया
पोस्ट-जहाँसापुर
जिला-सीतापुर(उत्तर प्रदेश)
पिन-261141
मो.-7518768506

नवम् कोड- 06

जब अन्याय-अधर्म धरा पर, सीमा से बढ़ जाएगा।
तब-तब युद्ध मौत का तांडव, दुनिया को दिखलाएगा।

जब-जब भाई निज भाई के, अधिकारों का गबन करे।
पुत्रमोह में कोई राजा, कर्तव्यों का हनन करे।
द्यूत-क्रिया में भरी सभा में,कुलवधु जब हारी जाए।
भीष्म-पितामह जैसा योद्धा,जब कायरता दिखलाए।
धर्म स्वयं जब युध्द-क्षेत्र में, साम दाम अपनाएगा।
तब-तब युद्ध मौत का तांडव दुनिया को दिखलाएगा।

अहंकार दो आकाओं का, सारी दुनिया झेल रही।
बारूदों हथगोलों से है, खूनी होली खेल रही।
सिंहासन की भेंट चढ़ रही,है जनता बारी-बारी।
लाशों की दुर्गंध झेलती,मरघट बनी धरा प्यारी।
जब-जब मिथ्य दंभ में शासक, हठधर्मिता निभाएगा।
तब-तब युद्ध मौत का तांडव दुनिया को दिखलाएगा।

हो परिणाम युद्ध का कुछ भी,कोई हारा-जीता है।
उजड़ा है सिंदूर किसी का, माँ का आँचल रीता है।
राह ताकती रहीं राखियाँ, लौट न पाया भाई है।
टूटा धैर्य पिता का बेटे की जब लाश उठाई है।
निर्दोषों के रक्त-पगा जब, कोई तिलक लगाएगा।
तब-तब युद्ध मौत का तांडव, दुनिया को दिखलाएगा।

ऐसा नहीं युद्ध केवल दो, देशों में ही होता है ।
घर की चार दिवारी में भी, मानव संयम खोता है।
वाणी के आयुध से हत्या, संबंधों की होती है।
घायल हो चुपचाप मित्रता,लाश स्वयं की ढोती है।
रक्षक ही भक्षक बनकर, जब-जब आतंक मचाएगा।
तब-तब युद्ध मौत का तांडव दुनिया को दिखलाएगा।

युद्ध अगर करना है अपने, अहंकार से युद्ध करें।
सत्यमार्ग पर चलना सीखें, अपने मन को बुद्ध करें।
दुराचार को जाने वाली राहों से नाता तोड़ें।
गंगाजल-सम शुद्ध करें मन,राग-द्वेष ईर्ष्या छोड़ें।
मोह-जाल माया का जब तक, आँखों को भरमाएगा।
तब-तब युद्ध मौत का तांडव दुनिया को दिखलाएगा।

सुनंदा झा
टाइप-7,जवाहर लाल नेहरू रोड
भारती नगर ,तूतीकोरिन
तमिलनाडु
628004
मोबाइल नं-8128724194

दशम् कोड – 13

तृषा स्वार्थ की गर्वित भू को,करती रही अशुद्ध।
रक्त पिपासा ने मानव की, दिए धरा को युद्ध।।

कूटनीति ने बुनकर पग-पग,मकड़ी से जाले।
सूत्र वसुधैव कुटुंबकम के, मूल्य बदल डाले।।
खींच खड़ी की है धरती पर, कल्पित दीवारें,
अंतहीन लिप्सा के नभ में, उड़ते रखवाले।।

गतिज पंथ जो मानवता के,खल करते अवरुद्ध।
रक्त पिपासा ने मानव की, दिए धरा को युद्ध।।1

सोच लगी है अब सामंती, शस्त्र उगाने में ।
करुणा के सागर को दानव,लगे सुखाने में।।
ज्ञान चक्षु पर जड़ डाले हैं, कुंठा के ताले,
धर्म-यंत्र आतंकी पुतले, लगे बनाने में ।।

निगल रही नित मानवता को,तानाशाही क्रुद्ध।
रक्त पिपासा ने मानव की, दिए धरा को युद्ध।।

छिन्न-भिन्न कर तन वसुधा का,अंबर की बारी।
नाच रहे उन्मुक्त गगन में, उन्मद व्यापारी।।
हँसते अधरों पर लिख डाली,छल ने व्यथा कथा।
फिर बलिष्ठ से निर्बल मन की, प्रत्याशा हारी।।

काश मनुज हो जाता पल में, अन्तर्मन से बुद्ध।।
रक्त पिपासा ने मानव की, दिए धरा को युद्ध।।3

भीमराव ‘जीवन’ बैतूल

एकादशम् कोड – 05

हठ करे जब बुद्धि से मन ,द्वन्द का उद्भव हृदय में।
मानकों पर सच खरा हो,शंख तब बजता विजय में।

मौन मारक शस्त्र है पर ,चित्त में हलचल मचाता,
अत्य चिन्तन से विकल मन, टूटता संबल रुलाता।
कामनाएँ जन्म लेतीं , ऐषणा जब शीर्ष पर हो,
मति नहीं साथी हृदय की,तोड़ती हर एक भ्रम वो।

गंध कस्तूरी लुभाती, जागता री मन निलय में,
मानकों पर सच खरा हो,शंख तब बजता विजय में।

सैन्य बल कब काम आता,नृप कभी जो हार जाता,
वेदना का क्षुब्ध वर्णन, आखरों में कब समाता।
चेतना हारी ढहा जब, भावनाओं का भवन भी,
खण्डहर मन की हवेली,शूल सी चुभती पवन भी।

द्वन्द से डरता हमेशा, एक बच्चा इस समय में।।
मानकों पर सच खरा हो,शंख तब बजता विजय में।

युद्ध तो अवसाद देता ,बाह्य-अंतस् को भिगोता,
पीर अनहद अश्रु के सँग,हर्ष अपना मूल्य खोता।
खंड अगणित भावनाएँ , खंड होती प्रेरणा नित,
भेद मिथ्या और सच का,जान पाते बस स्वयं हित।

हों निरुत्तर प्रश्न सारे , कर्म की गति साध्य लय में,
मानकों पर सच खरा हो,शंख तब बजता विजय में।

युद्ध,मति को भ्रमित करता,लक्ष्य हर क्षण ही भटकता,
प्राप्त खुशियों को ग्रहण हो,शांति का दिनमान छुपता।
व्यर्थ वादों अरु विवादों, से स्वयं को दूर कर ले,
धैर्य कुंजी हर प्रलय की,यह अमिय यदि पूर्व वर ले।

द्वन्द का परिणाम ध्वंसक,श्वास जाती शेष क्षय में,
मानकों पर सच खरा हो,शंख तब बजता विजय में।

आशा राय “नशीने”
राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)
दिनाँक– 18/4/2022
मोबाइल नम्बर—7987108288

सभी विजेताओं को बधाई सहित सूचित किया जाता है कि प्रतियोगिता के तृतीय अर्थात अंतिम चरण (मई-2022) में यही ग्यारह प्रतिभागी प्रतिभाग करेंगे।

ह०
प्रोफेसर अजिर बिहारी चौबे
दि० ३०-०४-२०२२

(उपनिदेशक – मूल्यांकन)
प्रज्ञा हिंदी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट

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